भारत में शिक्षा व्यवस्था में एक ऐतिहासिक बदलाव की ओर कदम बढ़ाया गया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में घोषणा की कि सीबीएसई और अन्य बोर्ड परीक्षाएं अब वर्ष में दो बार आयोजित की जाएंगी। यह अहम निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की सिफारिशों के तहत लिया गया है। यह निर्णय छात्रों को अधिक अवसर देने और उनके मानसिक तनाव को कम करने के उद्देश्य से किया गया है।
इस बदलाव के तहत, छात्रों को अब साल में दो बार बोर्ड परीक्षा का सामना करना होगा, जिसमें से वे अपनी बेहतर प्रदर्शन वाली परीक्षा का परिणाम अपने अंतिम अंकपत्र में देख सकेंगे। इसके अलावा, 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए सेमेस्टर सिस्टम लागू करने की भी योजना बनाई जा रही है।
दो बार बोर्ड परीक्षा का निर्णय: छात्रों के लिए क्या लाभ होगा?
शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि वर्ष में दो बार बोर्ड परीक्षा आयोजित करने का उद्देश्य छात्रों को अधिक अवसर देना है। मंत्री ने बताया कि यदि कोई छात्र अपनी पहली परीक्षा में अच्छे अंक नहीं ला पाता, तो उसे अपनी दूसरी परीक्षा में बैठने का विकल्प मिलेगा। इस प्रणाली के तहत, दोनों परीक्षाओं में से जो भी प्रदर्शन बेहतर होगा, वही अंतिम परिणाम में शामिल किया जाएगा।
इस कदम से छात्रों को असफलता के डर को कम करने और बेहतर तरीके से पढ़ाई करने का अवसर मिलेगा। शांतनु कामथे, जो पुणे के वरिष्ठ शिक्षा विशेषज्ञ हैं, ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “यह निर्णय छात्रों के लिए एक सकारात्मक कदम है। इससे उन्हें असफलता का डर कम होगा और विषयों को समझने के लिए उन्हें पर्याप्त समय मिलेगा।”
एनईपी 2020 के तहत बोर्ड परीक्षा में यह बदलाव क्यों किया जा रहा है?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 ने यह प्रस्ताव दिया था कि बोर्ड परीक्षाओं को साल में दो बार आयोजित किया जाए। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि छात्रों को एक ही अवसर में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव महसूस न हो। एनसीएफ (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा) ने सुझाव दिया था कि छात्रों को अपने बेहतर प्रदर्शन के लिए पर्याप्त अवसर मिलें, ताकि वे अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन कर सकें।
इस बदलाव का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि छात्रों को अपनी पढ़ाई के दौरान अधिक लचीलापन मिलेगा और वे अपनी गलतियों को सुधारने का समय पाएंगे। साथ ही, यह कदम छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होगा, क्योंकि एक ही बार में परीक्षा का दबाव कम हो जाएगा।
शिक्षकों और स्कूलों पर क्या असर पड़ेगा?
हालांकि यह बदलाव छात्रों के लिए सकारात्मक हो सकता है, लेकिन शिक्षकों और स्कूलों के लिए यह एक नई चुनौती प्रस्तुत कर सकता है। साल में दो बार परीक्षाएं आयोजित करने के लिए परीक्षा कैलेंडर में बदलाव करना होगा, और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि संसाधन सही तरीके से वितरित किए जाएं।
शिक्षकों को भी छात्रों के पुनः प्रयास को ध्यान में रखते हुए अधिगम कार्यक्रम को लचीला बनाना होगा। हालांकि, यह कदम शिक्षकों को छात्रों के समग्र विकास पर ज्यादा ध्यान देने का अवसर देगा, लेकिन इसके साथ ही परीक्षा की तैयारी और पुनः परीक्षा का बोझ भी बढ़ सकता है।
साल में दो बार परीक्षा से क्या समस्याएं आ सकती हैं?
इस महत्वपूर्ण बदलाव को लागू करने में कुछ चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं। सबसे पहले, स्कूलों और बोर्डों को परीक्षा कैलेंडर को पुनः व्यवस्थित करना होगा। इसके अलावा, संसाधन और लॉजिस्टिक्स के बारे में भी विस्तृत योजना बनानी होगी। इसके अलावा, पुनः परीक्षा के लिए अतिरिक्त प्रबंधन की आवश्यकता होगी, जो प्रशासनिक दृष्टिकोण से एक चुनौती हो सकती है।
विशेषज्ञों की राय
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि साल में दो बार परीक्षा का विकल्प छात्रों के लिए बहुत फायदेमंद होगा। पुणे के एक अन्य शिक्षा विशेषज्ञ, प्रोफेसर सुरेश शर्मा का कहना है, “यह निर्णय छात्रों को स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और सकारात्मक मानसिकता को बढ़ावा देने का अवसर देगा। इससे वे अपनी गलतियों को सुधार सकेंगे और बेहतर तरीके से अपने समझने के कौशल का विकास कर सकेंगे।”
इसके साथ ही, विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस बदलाव से छात्रों को ज्यादा समय मिलेगा, जो उन्हें बैकलॉग या कमजोरी को सुधारने में मदद करेगा।
2026-27 से लागू होगा नया सिस्टम
इस बदलाव का विस्तार से पालन 2026-27 से होगा। पहले 2025-26 सत्र से यह बदलाव लागू करने की योजना थी, लेकिन इसे एक वर्ष के लिए टाल दिया गया है, ताकि सीबीएसई और अन्य बोर्डों को इसे लागू करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। इस दौरान, शिक्षा मंत्रालय ने यह सुनिश्चित करने का फैसला किया कि सभी स्कूलों और बोर्डों को इस बदलाव को ठीक से लागू करने के लिए एक स्पष्ट योजना मिल सके।
निष्कर्ष
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का यह ऐतिहासिक निर्णय शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव लाने वाला है। इससे न केवल सीबीएसई और अन्य बोर्ड परीक्षाएं बेहतर होंगी, बल्कि इससे छात्रों को अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए ज्यादा अवसर मिलेंगे। इसके परिणामस्वरूप, छात्रों को असफलता के डर से मुक्त होकर बेहतर प्रदर्शन करने का अवसर मिलेगा, जो उनकी शिक्षा प्रणाली को और मजबूत बनाएगा।
यह बदलाव, हालांकि, शिक्षकों और स्कूलों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन अगर इसे सही तरीके से लागू किया गया, तो यह कदम छात्रों के लिए एक सकारात्मक, समावेशी और सहायक शिक्षा प्रणाली की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा।